केंद्र सरकार का वित्त (2019-20 से 2024-25)

चर्चा पत्र

केंद्र सरकार का वित्त (2019-20 से 2024-25)

इस नोट में 2019-20 से बाद की अवधि, यानी 17वीं लोकसभा के दौरान केंद्र सरकार के वित्त के कुछ रुझानों को दर्शाया गया है। 2019-20 और 2020-21 के शुरुआती वर्ष आर्थिक मंदी और कोविड-19 महामारी से प्रभावित थे। 2020-21 में देशव्यापी लॉकडाउन लागू होने से केंद्र सरकार के वित्त पर असर पड़ा। कर संग्रह में गिरावट आई, जबकि राजकोषीय और राजस्व घाटा कई वर्षों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया। हालांकि केंद्र सरकार के राजकोषीय घाटे में कुछ वृद्धि पिछले वर्षों के बकाया सबसिडी के भुगतान के कारण हुई थी।

महामारी के बाद की अवधि में केंद्र सरकार ने पूंजीगत परिव्यय पर बजटीय व्यय को काफी बढ़ाया है। वह राज्यों को पूंजीगत व्यय के लिए ब्याज मुक्त ऋण भी प्रदान कर रही है। जहां तक राजस्व की बात है, जीडीपी के प्रतिशत के रूप में केंद्र सरकार का सकल कर राजस्व मोटे तौर पर समान रहा है। हालांकि वह अपने विनिवेश अनुमानों को पूरा करने में लगातार पिछड़ रही है। 

उच्च बजटीय परिव्यय के बावजूद सार्वजनिक क्षेत्र का पूंजीगत व्यय निचले स्तर पर है 

केंद्र सरकार रक्षा, रेलवे, सड़क और राजमार्ग जैसे विभिन्न क्षेत्रों में पूंजी परिव्यय करती है। पूंजी परिव्यय से परिसंपत्तियों का निर्माण होता है और कार्यकुशलता को बढ़ावा देने के साथ-साथ अर्थव्यवस्था की उत्पादक क्षमता बढ़ती है।  [1]   सार्वजनिक क्षेत्र के पूंजी परिव्यय के वित्तपोषण के दो व्यापक तरीके हैं: (i) केंद्र सरकार द्वारा प्रत्यक्ष बजटीय सहयोग के माध्यम से, या (ii) सार्वजनिक उद्यमों और विभागीय उपक्रमों द्वारा संसाधन जुटाना। सार्वजनिक उद्यम और विभागीय उपक्रम (जैसे रेल मंत्रालय के तहत भारतीय रेलवे) विभिन्न स्रोतों जैसे आंतरिक प्राप्तियों का उपयोग, बांड जारी करना और बाहरी वाणिज्यिक उधार के माध्यम से पूंजी निवेश के लिए संसाधन जुटा सकते हैं। इन्हें आंतरिक और अतिरिक्त बजटीय संसाधन (आईईबीआर) कहा जाता है। 

रेखाचित्र 1: केंद्र सरकार और सार्वजनिक उद्यमों द्वारा पूंजीगत व्यय (जीडीपी का%)
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नोट: RE संशोधित अनुमान है और BE बजट अनुमान है। 
स्रोत: यूनियन बजट डॉक्यूमेंट्स; एमओएसपीआई; पीआरएस।

2019-20 और 2024-25 के बीच पूंजी परिव्यय के लिए बजटीय सहयोग जीडीपी के 1.5% से बढ़कर जीडीपी का 2.9% हो गया है। इसे केंद्र के ऊंचे राजकोषीय घाटे से मदद मिली है। वहीं आईईबीआर के माध्यम से वित्तपोषित सार्वजनिक उद्यमों द्वारा पूंजी निवेश जीडीपी के 3.2% से घटकर जीडीपी का 1% हो गया है। यह सार्वजनिक संस्थाओं के पूंजी निवेश की जगह बजटीय व्यय के उपयोग का संकेत देता है। उल्लेखनीय है, जबकि पूंजीगत परिव्यय पर बजटीय व्यय में वृद्धि हुई हैसार्वजनिक क्षेत्र का पूंजीगत व्यय (केंद्र और सार्वजनिक संस्थाओं सहित) 2019-20 में जीडीपी के 4.7% से घटकर 2024-25 में जीडीपी का 3.9% होने का अनुमान है। यह बदलाव काफी हद तक रेलवे और सड़क क्षेत्र में हुआ है। 2019-20 के बाद से रेलवे, सड़क और रक्षा पर पूंजीगत परिव्यय, पूंजीगत परिव्यय पर बजटीय खर्च का 70% से अधिक हो गया है। 2019-20 में रेलवे और सड़कों का आईईबीआर कुल आईईबीआर का 24% था। 2024-25 में यह रेलवे के लिए कुल आईईबीआर का 4% था, जबकि सड़कों के लिए इसे इस्तेमाल नहीं किया गया था।

आईईबीआर के माध्यम से धन जुटाने पर कम जोर देने का एक कारण यह है कि कुछ सार्वजनिक संस्थाओं पर बहुत अधिक ऋण है। उदाहरण के लिए सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने ऋण चुकौती के अपने दायित्वों को देखते हुए भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग अथॉरिटी (एनएचएआई) को आईईबीआर से धन जुटाने का आदेश नहीं दिया है।  [2]  28 फरवरी 2023 तक एनएचएआई का कुल बकाया कर्ज 3.43 लाख करोड़ रुपए था।  [3]  कुल आवंटन में हिस्सेदारी के रूप में इसकी ऋण चुकौती 2021-22 में 25% थी जो 2027-28 में घटकर 21% होने की उम्मीद है। 2   परिवहन संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2022) ने कहा था कि सिर्फ उच्च बजटीय समर्थन एनएचएआई की निवेश संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं हो सकती हैं।  [4]      

उर्वरक सबसिडी की हिस्सेदारी में वृद्धि, जबकि पेट्रोलियम सबसिडी चरणबद्ध तरीके से समाप्त 

2024-25 में सबसिडी प्रदान करने पर केंद्र सरकार का खर्च जीडीपी का 1.3% और उसके कुल राजस्व व्यय का 11% होने का अनुमान है। केंद्र सरकार खाद्य सबसिडी, सबसिडी वाले उर्वरक, पेट्रोलियम सबसिडी (एलपीजी के लिए) और ब्याज सबसिडी जैसी विभिन्न सबसिडी प्रदान करती है।    

2019-20 और 2024-25 के बीच उर्वरक सबसिडी पर खर्च सालाना 15% बढ़ने का अनुमान है। बजट अनुमान के अनुसार, पेट्रोलियम सबसिडी 2019-20 में 38,529 करोड़ रुपए से घटकर 2024-25 में 11,925 करोड़ रुपए हो गई है और अब यह मुख्य रूप से गरीब परिवारों को एलपीजी प्रदान करने के लिए है। राष्ट्रीय लघु बचत निधि (एनएसएसएफ) ऋणों के समायोजन के बाद, इसी अवधि में खाद्य सबसिडी में सालाना 4% की वृद्धि हुई। खाद्य सबसिडी निम्नलिखित को प्रदान की जाती है: (i) राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा एक्ट (एनएफएसए)2013 के तहत खाद्यान्न वितरण के लिए एफसीआई और (ii) खाद्यान्नों की विकेंद्रीकृत खरीद के लिए राज्यों को।  [5]  पिछले दिनों खाद्य सबसिडी पर बढ़ते खर्च को संतुलित करने के लिए कई सुझाव दिए गए हैं। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) केंद्रीय निर्गम मूल्य को संशोधित करना और (ii) लाभार्थियों को नकद सबसिडी का सीधा हस्तांतरण करना। 5 ,  [6] ,  [7]  

रेखाचित्र 2: सकल घरेलू उत्पाद में प्रमुख सबसिडी व्यय का हिस्सा
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नोट: खाद्य सबसिडी को 2019-20 और 2020-21 में सबसिडी के हिस्से के रूप में एनएसएसएफ ऋण को प्रतिबिंबित करने के लिए समायोजित किया गया है। RE संशोधित अनुमान है और BE बजट अनुमान है।
स्रोत: यूनियन बजट डॉक्यूमेंट्स; एमओएसपीआई; पीआरएस।

अप्रैल 2020 और दिसंबर 2022 के बीच केंद्र सरकार ने एनएफएसए लाभार्थियों को मुफ्त में अतिरिक्त खाद्यान्न प्रदान किया। नवंबर 2023 में केंद्र सरकार ने 11.8 लाख करोड़ रुपए की लागत से एनएफएसए लाभार्थियों को 1 जनवरी 2024 से पांच साल तक मुफ्त खाद्यान्न उपलब्ध कराने का निर्णय लिया।  [8]

उर्वरक सबसिडी का भुगतान उन मैन्यूफैक्चरर्स और आयातकों को किया जाता है जो बाजार मूल्य से कम पर किसानों को उर्वरक बेचते हैं। 5   उर्वरकों के उत्पादन में भारत कच्चे माल की खरीद के लिए आयात पर बहुत अधिक निर्भर है। 5  15वें वित्त आयोग ने कहा था कि इस तरह की निर्भरता भारत को अंतरराष्ट्रीय कीमतों में उतार-चढ़ाव के प्रति संवेदनशील बनाती है और उर्वरक सबसिडी को अव्यावहारिक बनाती है। 5   इससे पहले केंद्र सरकार ने उर्वरक सबसिडी के भुगतान को उस साल से टालने के लिए बजटेतर वित्तपोषण का सहारा लिया है।  [9]   रसायन और उर्वरक संबंधी स्टैडिंग कमिटी (2020) ने कहा था कि कई उर्वरक संयंत्र बहुत पुरानी तकनीक से काम करते हैं।  [10]  इस तरह सरकार अधिक सबसिडी चुकाकर इस अक्षमता की कीमत चुकाती है। कमिटी ने सुझाव दिया था कि किसानों को सीधे उनके बैंक खातों में उर्वरक सबसिडी दी जानी चाहिए, जबकि मैन्यूफैक्चरर्स को अपने हिसाब से उर्वरकों का उत्पादन और बिक्री करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए।  10

अधिकांश राजस्व प्राप्तियां प्रतिबद्ध व्यय, सबसिडी, अनुदान, प्रमुख योजनाओं पर खर्च की गईं 

रेखाचित्र 3: कुछ प्रमुख मदों पर खर्च की गई राजस्व प्राप्तियों का हिस्सा
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नोट: प्रमुख सबसिडी में खाद्य, उर्वरक और पेट्रोलियम शामिल हैं। प्रमुख योजनाओं में मनरेगा, प्रधानमंत्री आवास योजना, जल जीवन मिशन और पीएम-किसान शामिल हैं। RE संशोधित अनुमान है और BE बजट अनुमान है।
स्रोत: यूनियन बजट डॉक्यूमेंट्स; पीआरएस।

राजस्व व्यय का अर्थ उन वस्तुओं पर खर्च करना है जिनसे संपत्ति का निर्माण नहीं होता है। केंद्र सरकार के लिए राजस्व व्यय की कुछ प्रमुख मदों में प्रतिबद्ध व्यय (ब्याज, पेंशन, वेतन), सबसिडी, राज्यों को वित्त आयोग अनुदान और कुछ प्रमुख योजनाएं शामिल हैं। 2019-20 और 2024-25 के बीच इन वस्तुओं पर केंद्र सरकार का व्यय उसकी राजस्व प्राप्तियों का 90% से अधिक होने का अनुमान है। इस अवधि में केंद्र सरकार ने लगातार अपनी राजस्व प्राप्तियों का 65% से अधिक ब्याज, वेतन और पेंशन पर खर्च किया। इसके बाद भोजन, उर्वरक और पेट्रोलियम सबसिडी पर खर्च किया गया। पना व्यय पर राजस्व व्यय शामिल नहीं है।

2020-21 के बाद से केंद्र ने अपनी राजस्व प्राप्तियों का कम से कम 10% चार योजनाओं-मनरेगा, जल जीवन मिशन, प्रधानमंत्री आवास योजना और पीएम-किसान पर खर्च किया है। उल्लेखनीय है कि इन घटकों में अन्य केंद्र प्रायोजित योजनाओं, केंद्रीय क्षेत्र की योजनाओं और स्था

रेखाचित्र 3 में शामिल नहीं किए गए अन्य राजस्व व्यय 2019-20 और 2024-25 के बीच केंद्र सरकार की राजस्व प्राप्तियों का कम से कम 30% थे। राजस्व प्राप्तियों से अधिक राजस्व व्यय करने का अर्थ यह है कि केंद्र सरकार 2019-20 से राजस्व घाटे में बनी हुई है। राजस्व संतुलन बनाए रखने के लिए केंद्र सरकार को या तो राजस्व प्राप्तियां बढ़ानी होंगी या राजस्व व्यय कम करना होगा। उल्लेखनीय है कि ब्याज, वेतन और पेंशन पर प्रतिबद्ध व्यय को अल्प से मध्यम अवधि में रैशनलाइज करना मुश्किल है। केंद्र सरकार द्वारा वित्त आयोग के सुझाव मंजूर करने के लिए बाद राज्यों को दिया जाने वाला अनुदान भी मोटे तौर पर अपरिवर्तित रहता है।

केंद्र सरकार का सकल कर राजस्व काफी हद तक अपरिवर्तित 

2019-20 और 2020-21 में केंद्र सरकार का सकल कर राजस्व क्रमशः आर्थिक मंदी और कोविड-19 महामारी के कारण घटकर जीडीपी का लगभग 10% हो गया। तब से यह जीडीपी के लगभग 11% तक पहुंच गया है जो कि 2019-20 से पहले की दर थी। 2018-19 से केंद्र सरकार के सकल कर राजस्व में आयकर, कॉरपोरेट टैक्स और वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) का हिस्सा 70% से अधिक रहा है। 2024-25 में इन तीन कर स्रोतों में से प्रत्येक से राजस्व जीडीपी का लगभग 3% होने का अनुमान है। हाल के वर्षों में सकल कर राजस्व में कॉरपोरेट टैक्स के हिस्से में कमी आई है। यह निवेश आकर्षित करने और आर्थिक विकास को समर्थन देने के लिए कॉरपोरेट टैक्स की दरों में कटौती के कारण है।  [11]   इस अवधि में आयकर से राजस्व में वृद्धि देखी गई है। 15वें वित्त आयोग ने कहा था कि भारत का कर आधार बहुत संकीर्ण है।  [12]  2020-21 से केंद्र सरकार ने एक नई व्यक्तिगत आयकर व्यवस्था पेश की, जहां करदाताओं द्वारा कुछ छूट और कटौतियों को छोड़ देने पर कर की दरें कम हो जाएंगी। 12 

रेखाचित्र 4: सकल कर राजस्व और सकल घरेलू उत्पाद के % के रूप में प्रमुख करों से प्राप्त राजस्व

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नोट: RE संशोधित अनुमान है और BE बजट अनुमान है। 
स्रोत: यूनियन बजट डॉक्यूमेंट्स; एमओएसपीआई; पीआरएस।

जीएसटी को जुलाई 2017 में पेश किया गया था और इसमें केंद्र और राज्यों के स्तर पर विभिन्न करों को शामिल किया गया था। जीएसटी के अंतर्गत शामिल किए गए कुछ केंद्रीय करों में केंद्रीय उत्पाद शुल्क, सेवा कर और केंद्रीय बिक्री कर शामिल हैं। 12   जीएसटी से राजस्व 2018-19 से जीडीपी के लगभग 3% पर स्थिर रहा है, 2020-21 को छोड़कर जब यह जीडीपी का 2.8% था। 15वें वित्त आयोग ने जीएसटी की क्षमता में सुधार के लिए कई सुझाव दिए थे। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) इनवर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर को ठीक करना (इंटरमीडिएट्स पर जीएसटी दर फाइनल वस्तुओं से अधिक होना), (ii) अनुपालन में सुधार, (iii) छूट को कम करना, और (iv) कर दरों का विलय करके तीन-दरों की संरचना का उपयोग करना। 12 

सेस और सरचार्ज के जरिए काफी राजस्व जुटाया गया, जिससे राज्यों को हस्तांतरित धनराशि प्रभावित हुई 

संविधान केंद्र सरकार को सेस और सरचार्ज लगाने की अनुमति देता है। हालांकि वे करों के विभाज्य पूल का हिस्सा नहीं होते हैं जिससे वित्त आयोग के सुझावों के अनुसार राज्यों को राजस्व हस्तांतरित किया जाता है।  [13]  किसी क्षेत्र को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए एक विशिष्ट उद्देश्य से सेस लगाया जाता है। 12  सेस अल्पावधि के लिए लगाया जाता है। 12  हाल के वर्षों में केंद्र सरकार ने सेस और सरचार्ज लगाकर काफी राजस्व जुटाया है। 2020-21 और 2021-22 में केंद्र सरकार के सकल कर राजस्व (जीटीआर) में सेस और सरचार्ज के जरिए मिलने वाले राजस्व का हिस्सा क्रमशः 20% और 18% था (रेखाचित्र 5 देखें)। 2017-18 और 2024-25 के बीच, सेस और सरचार्ज से केंद्र सरकार का राजस्व 15% की वार्षिक दर से बढ़ने का अनुमान है, जबकि कुल सकल कर राजस्व में वृद्धि प्रति वर्ष 10% से कम होने का अनुमान है।

रेखाचित्र 5: केंद्र के जीटीआर में सेस और सरचार्ज से मिलने वाले राजस्व का हिस्सा

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नोट: आंकड़ों में जीएसटी क्षतिपूर्ति सेस शामिल नहीं है। RE संशोधित अनुमान है और BE बजट अनुमान है।
स्रोत: आरबीआई; यूनियन बजट डॉक्यूमेंट्स; पीआरएस।

सेस और सरचार्ज में वृद्धि के कारण सकल कर राजस्व के हिस्से के रूप में राज्यों को हस्तांतरण में कमी आई है। इस प्रकार बजट अनुमान के अनुसार, विभाज्य पूल के 41% को हस्तांतरित करने का वित्त आयोग का फॉर्मूला 2024-25 में सकल कर राजस्व के 32% में तब्दील हो गया है। 2019 में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने कहा कि विभिन्न वित्त आयोगों ने कर हस्तांतरण में जो वृद्धि का सुझाव दिया है, सेस और सरचार्ज लगाकर उसके प्रभाव को कम किया जा सकता है।  [14]   आरबीआई ने कहा कि आयात पर नए सेस उन सेस की भरपाई के लिए लगाए गए थे जिन्हें जीएसटी के तहत शामिल किया गया था। 2024-25 में सेस और सरचार्ज से प्राप्त राजस्व घटकर सकल कर राजस्व का 14% होने का अनुमान है।

विनिवेश से प्राप्तियां लगातार बजट अनुमान से कम रही हैं

रेखाचित्र 6: विनिवेश से प्राप्तियां (करोड़ रुपए)

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नोट: RE संशोधित अनुमान है और BE बजट अनुमान है।
स्रोत: यूनियन बजट डॉक्यूमेंट्स; पीआरएस।

विनिवेश में सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में सरकार की हिस्सेदारी की बिक्री शामिल है। यह केंद्र सरकार के लिए पूंजीगत प्राप्तियों का प्रमुख स्रोत है। फरवरी 2021 में केंद्र सरकार ने नई सार्वजनिक क्षेत्र उद्यम (पीएसई) नीति को अधिसूचित किया।  [15]   नीति में निजीकरण, विलय या क्लोजर के माध्यम से विभिन्न क्षेत्रों में केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों की मौजूदगी को कम करने की परिकल्पना की गई है। रक्षा, बिजली और बैंकिंग जैसे रणनीतिक क्षेत्रों में केवल सीपीएसई की न्यूनतम उपस्थिति बनाए रखी जाएगी। 15  गैर-रणनीतिक क्षेत्रों में 15 सार्वजनिक उद्यमों का निजीकरण या उन्हें बंद किया जाएगा।  [16]   हालांकि 2019-20 और 2023-24 के बीच केंद्र सरकार विनिवेश के अपने बजट लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाई। 2023-24 में केंद्र सरकार की संशोधित विनिवेश प्राप्तियां बजट अनुमान से 51% कम होने का अनुमान है। 2024-25 में केंद्र ने विनिवेश से 50,000 करोड़ रुपए जुटाने का बजट रखा है।

केंद्र सरकार ने एक पीएसयू में दूसरे पीएसयू की हिस्सेदारी को बेचना बंद कर दिया है जो पहले अपने विनिवेश लक्ष्यों को पूरा करने का एक तरीका था। 2017-18 और 2018-19 में जब केंद्र ने अपने बजटीय विनिवेश लक्ष्य को पार कर लिया, तो इनमें से 37% और 17% हिस्सा अन्य सार्वजनिक उपक्रमों में सरकार की हिस्सेदारी खरीदने वाले पीएसयू से प्राप्त हुआ।  [17]  ऐसे ही लेनदेन 2019-20 में भी किए गए थे। 2020 में भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) ने कहा कि ऐसे लेनदेन के परिणामस्वरूप केवल सार्वजनिक क्षेत्र के संसाधनों का सरकार को हस्तांतरण हुआ।  [18]   इससे विनिवेशित पीएसयू में सार्वजनिक क्षेत्र/सरकार की हिस्सेदारी में कोई बदलाव नहीं हुआ। 18  2020-21 के बाद से केंद्र सरकार ने ऐसे लेनदेन बंद कर दिए हैं।

घाटा और कर्ज ऊंचे स्तर पर हैं

2020-21 में केंद्र सरकार का राजस्व और राजकोषीय घाटा काफी बढ़ गया। हालांकि खाद्य सबसिडी के बकाये के लिए एफसीआई को दिए गए ऋण को चुकाने के कारण भी घाटे में कुछ वृद्धि (जीडीपी का 1.7%) हुई है। तब से घाटा कम हो गया है। हालांकि केंद्र अब भी बड़ा राजस्व घाटा उठा रही है। राजस्व घाटे का अर्थ यह है कि सरकार व्यय के वित्तपोषण के लिए उधार ले रही है। इससे परिसंपत्तियों का निर्माण नहीं होता या देनदारियां कम नहीं होतीं। एफआरबीएम समीक्षा समिति (2017) ने कहा है कि उधार के माध्यम से आवर्ती व्यय का वित्तपोषण वांछनीय नहीं और उन्हें कर राजस्व के माध्यम से वित्तपोषित किया जाना चाहिए।  [19]  

रेखाचित्र 7: जीडीपी के % के रूप में राजस्व घाटा और राजकोषीय घाटा

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नोट: RE संशोधित अनुमान है और BE बजट अनुमान है।
स्रोत: यूनियन बजट डॉक्यूमेंट्स; पीआरएस।

राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन एक्ट, 2003 के तहत केंद्र सरकार को 31 मार्च, 2021 तक राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 3% तक सीमित करना था।  [20]    2021 में केंद्र ने इस कानून में संशोधन का प्रस्ताव रखा, और राजकोषीय समेकन के रोडमैप को फिर से तैयार किया।  [21]    2025-26 के लिए घोषित राजकोषीय घाटे का लक्ष्य जीडीपी के 4.5% से कम है। 21

उच्च राजस्व और राजकोषीय घाटे के साथ-साथ, केंद्र सरकार की देनदारियां भी एफआरबीएम एक्ट के तहत निर्धारित सीमा से परे पहुंच गई हैं। 2018 में सामान्य सरकारी ऋण (केंद्र और राज्य) को जीडीपी के 60% पर निर्धारित करने के लिए एफआरबीएम एक्ट में संशोधन किया गया था। 20  इसमें से केंद्र सरकार के ऋण को जीडीपी के 40% पर सीमित किया गया था जिसे 2024-25 तक हासिल किया जाना था। यह एफआरबीएम समीक्षा समिति के सुझावों के अनुरूप था। 19  2018-19 में केंद्र का ऋण जीडीपी अनुपात जीडीपी का 48% था, जो आर्थिक मंदी और सरकारी खर्च तथा राजस्व पर कोविड 19 के प्रभाव के बाद 2020-21 में बढ़कर जीडीपी का 61% हो गया। तब से 2024-25 में इसके घटकर जीडीपी का 57% होने का अनुमान है। ऋण के उच्च स्तर के कारण केंद्र सरकार को अपनी राजस्व प्राप्तियों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा ब्याज भुगतान पर खर्च करना पड़ता है। 2019-20 में केंद्र सरकार ने अपनी राजस्व प्राप्तियों का 36% ब्याज भुगतान पर खर्च किया, जो 2024-25 के बजट अनुमान के अनुसार राजस्व प्राप्तियों का 40% तक बढ़ने का अनुमान है।

रेखाचित्र 8: जीडीपी के % के रूप में केंद्र की बकाया देनदारियां
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 नोट: RE संशोधित अनुमान है और BE बजट अनुमान है।
स्रोत: इकोनॉमिक सर्वे 2022-23; यूनियन बजट डॉक्यूमेंट्स; पीआरएस।
 

रेखाचित्र 9: राजस्व प्राप्तियों के % के रूप में ब्याज भुगतान
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नोट: RE संशोधित अनुमान है और BE बजट अनुमान है।
स्रोत: यूनियन बजट डॉक्यूमेंट्स; पीआरएस।

केंद्र सरकार बजटेतर उधार दर्ज कर रही है लेकिन खुलासों को लेकर समस्याएं हैं

बजटेतर उधार उन उधारियों का कहा जाता है, जो सीधे सरकार द्वारा नहीं लिए जाते हैं लेकिन जहां मूलधन और ब्याज सरकारी बजट से चुकाए जाते हैं। इस तरह की उधारी आम तौर पर सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों जैसी सरकारी स्वामित्व वाली संस्थाओं द्वारा जुटाई जाती हैं। चूंकि ये उधार सरकारी बजट दस्तावेजों का हिस्सा नहीं हैं, इसलिए राजकोषीय घाटे में इनकी गणना नहीं की जाती। कैग (2018) ने कहा किया था कि केंद्र सरकार ने खाद्य सबसिडी के बिल और सिंचाई योजनाओं के कार्यान्वयन जैसी मदों के लिए बजटेतर वित्तपोषण का सहारा लिया था। 9   उसने सुझाव दिया था कि केंद्र सरकार बजटेतर वित्तपोषण का खुलासा करने के लिए एक रूपरेखा तैयार कर सकती है। 9   

2019-20 के बाद से केंद्र सरकार सार्वजनिक उद्यमों द्वारा लिए गए बजटेतर उधार का खुलासा करती है। इन्हें निम्नलिखित द्वारा लिए जाते हैं: (i) सार्वजनिक उद्यमों द्वारा बांड जारी करना, जिन्हें केंद्र सरकार चुकाती है और (ii) एनएसएसएफ से सार्वजनिक उद्यमों को ऋण प्रदान करना। उदाहरण के लिए 2016-17 से 2020-21 के बीच एनएसएसएफ की ओर से भारतीय खाद्य निगम को 4.3 लाख करोड़ रुपए का ऋण प्रदान किया गया। उन्हें केंद्र द्वारा एफसीआई को बकाया खाद्य सबसिडी के बदले में प्रदान किया गया था। इस अवधि के दौरान जुटाई गई कुल बजटेतर उधारी में एफसीआई को दिए गए ऐसे ऋण 67% थे। अगर इन ऋणों को केंद्र की उधारी में शामिल किया गया होतातो उसका वास्तविक राजकोषीय घाटा 2016-17 और 2020-21 के बीच दर्ज राजकोषीय घाटे से अधिक होता (रेखाचित्र 10 देखें)। 2018-19 और 2019-20 मेंबजटेतर उधार के लेखांकन के बाद केंद्र का राजकोषीय घाटा, दर्ज किए गए राजकोषीय घाटे से लगभग एक प्रतिशत अधिक रहा होगा।

रेखाचित्र 10: बजटेतर उधारी सहित केंद्र सरकार का राजकोषीय घाटा (जीडीपी का %)
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नोट: जीडीपी के प्रतिशत के रूप में राजकोषीय घाटा की गणना नवीनतम जीडीपी आंकड़ों के अनुसार की जाती है। RE संशोधित अनुमान है और BE बजट अनुमान है।
स्रोत: यूनियन बजट डॉक्यूमेंट्स; 
एमओएसपीआईपीआरएस।

कैग ने केंद्र सरकार के बजटेतर उधार के खुलासे से जुड़ी समस्याओं का उल्लेख किया है। उसने कहा है कि केंद्र ने अपने खुलासे में 14,985 करोड़ रुपए की राशि शामिल नहीं की, जो 2019-20 में एयर इंडिया एसेट्स होल्डिंग लिमिटेड द्वारा जुटाई गई थी।  [22]   इस ऋण की अदायगी नागरिक उड्डयन मंत्रालय द्वारा की गई बजटीय सहायता के माध्यम से की जानी थी। इसी तरह भारतीय रेलवे वित्त निगम (आईआरएफसी) लिमिटेड के माध्यम से रेलवे के लिए 50,551 करोड़ रुपए की एकमुश्त वित्तपोषण व्यवस्था को भी 2020-21 के लिए केंद्र के खुलासे में शामिल किया जाना चाहिए था। 22  उल्लेखनीय है कि अगर इन मदों को बजटेतर उधार में शामिल किया गया होता तो समायोजित राजकोषीय घाटा जैसा कि रेखाचित्र 10 में दिखाया गया है, 2019-20 और 2020-21 में क्रमशः 0.1 प्रतिशत और 0.3 प्रतिशत अधिक होता।   

 

  [1]  State Finances: A Study of Budgets of 2022-23, Reserve Bank of India, January 2023, https://rbidocs.rbi.org.in/rdocs/Publications/PDFs/0STATEFINANCE2022233E17F212337844888755EFDBCC661812.PDF

  [2]  Report no. 342: “Demand for Grants (2023-24) of Ministry of Road Transport and Highways”, Standing Committee on Transport, Tourism, and Culture, Rajya Sabha, March 13, 2023, https://sansad.in/getFile/rsnew/Committee_site/Committee_File/ReportFile/20/173/342_2023_3_15.pdf?source=rajyasabha

  [3]  Unstarred Question no. 2471, Ministry of Road Transport and Highways, Rajya Sabha, March 22, 2023, https://sansad.in/getFile/annex/259/AU2471.pdf?source=pqars

  [4]  Report no. 317: ““Demand for Grants (2022-23) of Ministry of Road Transport and Highways”, Standing Committee on Transport, Tourism, and Culture, Rajya Sabha, March 14, 2022, https://sansad.in/getFile/rsnew/Committee_site/Committee_File/ReportFile/20/166/317_2022_9_11.pdf?source=rajyasabha

  [5]  Report of the 15th Finance Commission, Volume-III, The Union, October 2020, https://fincomindia.nic.in/asset/doc/commission-reports/XVFC-Vol%20III-Union.pdf

  [6]  Volume-2, Economic Survey 2020-21, January 2021, https://www.indiabudget.gov.in/budget2021-22/economicsurvey/doc/echapter_vol2.pdf

  [7]  “Recommendations of High-Level Committee on restructuring of FCI”, Press Information Bureau, Ministry of Consumer Affairs, Food and Public Distribution, January 22, 2015, https://pib.gov.in/newsite/PrintRelease.aspx?relid=114860

  [8]  “Free Foodgrains for 81.35 crore beneficiaries for five years: Cabinet Decision”, Press Information Bureau, Ministry of Consumer Affairs, Food and Public Distribution, November 29, 2023, https://pib.gov.in/PressReleaseIframePage.aspx?PRID=1980689.  

  [9]  Report of the Comptroller and Auditor General of India on Compliance of the Fiscal Responsibility of the Fiscal Resposnbility and Budget Management Act, 2003 for the year 2016-17, Report No. 20 of 2018, Comptroller and Auditor General of India, https://www.cag.gov.in/uploads/download_audit_report/2018/Report_No_20_of_2018_Compliance_of_the_Fiscal_Responsibility_and_Budget_Management_Act_2003_Department_of_Economic_Affairs_Minis.pdf

  [10]  Report no. 5: “Study of System of Fertiliser Subsidy”, Standing Committee on Chemicals and Fertilizers, Lok Sabha, March 17, 2020, https://sansad.in/getFile/lsscommittee/Chemicals%20&%20Fertilizers/17_Chemicals_And_Fertilizers_5.pdf?source=loksabhadocs

  [11]  Corporate tax rates slashed to 22% for domestic companies and 15% for new domestic manufacturing companies and other fiscal reliefs”, Press Information Bureau, Ministry of Finance, September 20, 2019, https://pib.gov.in/Pressreleaseshare.aspx?PRID=1585641

  [12]  Report of the 15th Finance Commission, Volume-I, Main report, October 2020, https://fincomindia.nic.in/asset/doc/commission-reports/XVFC%20VOL%20I%20Main%20Report.pdf

  [13]  Article 270, The Constitution of India, https://cdnbbsr.s3waas.gov.in/s380537a945c7aaa788ccfcdf1b99b5d8f/uploads/2023/05/2023050195.pdf

  [14]  State Finances: A Study of Budgets of 2019-20, Reserve Bank of India, September 2019, https://rbidocs.rbi.org.in/rdocs/Publications/PDFs/STATEFINANCE201920E15C4A9A916D4F4B8BF01608933FF0BB.PDF

  [15]  No. DPE/3(1)/2021-DD, Department of Public Enterprises, Ministry of Finance, December 13, 2021, https://dpe.gov.in/sites/default/files/DPE_OM_DTD_13.12.21_Guidelines_on_New_PSE_Policy_0.pdf

  [16]  Unstarred Question No. 1670, Ministry of Finance, Rajya Sabha, August 3, 2021, https://sansad.in/getFile/annex/254/AU1670.pdf?source=pqars

  [17]  Past Disinvestments, Department of Investment and Public Asset Managamanet, Ministry of Finance, as accessed on January 28, 2024, https://dipam.gov.in/past-disinvestment

  [18]  Report of the Comptroller and Auditor General of India for the year 2018-19, Comptroller and Auditor General of India, https://cag.gov.in/webroot/uploads/download_audit_report/2020/Report%20No.%204%20of%202020_Eng-05f808ecd3a8165.55898472.pdf

  [19]  Volume-I, FRBM Review Committee Report, January 2017, https://dea.gov.in/sites/default/files/Volume%201%20FRBM%20Review%20Committee%20Report.pdf

  [20]  Fiscal Responsibility and Budget Management Act, 2003, https://dea.gov.in/sites/default/files/FRBM%20Act%202003%20and%20FRBM%20Rules%202004.pdf

  [21]  Speech of Nirmala Sitharaman, Budget 2021-22, February 1, 2021, https://www.indiabudget.gov.in/budget2021-22/doc/Budget_Speech.pdf

  [22]  Report of the Comptroller and Auditor General of India on Compliance of the Fiscal Responsibility and Budget Management Act, 2003 for the year 2020-21, Comptroller and Auditor General of India, December 20, 2022, https://cag.gov.in/webroot/uploads/download_audit_report/2022/Report-No.-32-of-2022_FRBM_English-PDF-A_DSC-063a28aeb5458b7.96342361.pdf

 

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